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Monday, March 7, 2011

इक नई तुकबंदी! मुलाहिजा फरमाइये...

कितनी होशियारी
कि सबकुछ बचाकर भी
कह जाते हैं लोग
समझाते हैं-यही है दुनियादारी
काश! हमें भी आ जाए ये अय्यारी
कहे तो कहे दिल इसे मक्कारी