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Thursday, November 4, 2010

ये जग, जगमगाए

विश्वास का ले दीपक


द्रव्य आस्था का भरकर

बाती मेरे दीये की

उल्लास से नहाए

उजास के आंचल में

सारे ही सिमट जाए

ना अब कभी अंधेरा राहों में

तेरी आए

तेरी ही रोशनी में ये जग, जगमगाए

- हरीश बी. शर्मा

1 comment:

  1. बहोत ही सुंदर विचार
    आपको सपरिवार दिपोत्सव की ढेरों शुभकामनाएँ
    मेरी पहली लघु कहानी पढ़ने के लिये आप सरोवर पर सादर आमंत्रित हैं

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