ख्यालीराम सुबह उठा तो उसे गाय मरी हुई मिली। पत्नी के दुख का पारावार नहीं था। वजह, रात को उसी ने गाय को खूंटे से बांधा था। पता नहीं कैसे, क्या हुआ और गाय की मौत हो गई। ख्यालीराम की पत्नी ने इस मौत को अपने सिर लिया और दोपहर बाद अपने पति के साथ बीकानेर स्टेशन से कालका एक्सप्रेस में हरिद्वार के लिए रवाना हो गई। यह कहानी नहीं। हकीकत है। इस तरह वह प्रायश्चित करना चाह रही थी। गांवों में आज भी ऐसा होता है-अगर बंधी हुई गाय की मौत हो जाए तो गाय बांधने वाले को हरिद्वार स्नान करने जाना पड़ता है। मुझे याद आया कि कुछ साल पहले तक मरती हुई गाय को गीता सुनाई जाती थी। उसकी मुक्ति का यह जतन ठीक वैसा ही तो था जैसा किसी इंसान के लिए किया जाता है। हालांकि लूणकरसर के गांव अजीतमाना के ख्यालीराम के लिए यह धर्म से जुड़ा प्रश्न था। ख्यालीराम का कहना था कि मेघासर में उसका खेत है, ट्यूबवेल है-गाय भी वहीं थीं। गाय से बड़ा क्या धर्म?
इस घटना ने मुझे एक बार फिर धर्म को नए सिरे से समझने के लिए मजबूर कर दिया। क्या ख्याली के इस धर्म को सिर्फ हिंदू धर्म से जोड़कर समझा जा सकता है। हालांकि ख्याली के लिए समझ का यही तरीका था। उसने साधारणीकरण कर लिया था लेकिन उसका भाव क्या वास्तव में इतना साधारण है कि एक बार में समझ में आ जाए और दूसरी बार में स्वीकार कर लिया जाए।
मुझे बार-बार यही लग रहा था कि एक तरफ वह धर्म है जिसके नाम पर राजनीति हो रही है। दूसरी तरफ यह धर्म है जिससे बंधा व्यक्ति हाड कंपाने वाली ठंड में भी अपना घर-बार, खेती-बाड़ी छोड़कर हरिद्वार जाने की प्राथमिकता रखता है। धर्म के नाम पर पेशानी पर बल डालने वाले, नाक-भौं सिकोडऩे वाले लोग ख्याली के धर्म को कौनसा धर्म कहेंगे? यह तो तय है कि ख्याली वाले धर्म का मार्ग बहुत ही परेशानी भरा है। इसे अपनाने पर ही आपत्तियां हो सकती हैं। गाय पालने, दूध निकालने का कारोबार करने वालों के लिए इन सभी बातों के क्या मायने। फिर क्रीम निकालने वालों के लिए तो यह औचित्यहीन है।
मुझे बार-बार लग रहा था कि जो लोग कहते हैं कि धर्म की जड़ें बहुत गहरी हैं, उनका इशारा भगवाधारियों की ओर नहीं ख्यालीराम और उसकी पत्नी जैसे गृहस्थों की ओर रहा होगा जिनके लिए देवताओं की आरती, पूजा, सत्संग या के राजनीति की बजाय धर्म कुछ और है। यह कुछ और, कुछ और नहीं बल्कि सद्भाव है, अगर कोई हमारे हित की रक्षा करता है तो हम भी उसके प्रति हितैषी रहें। गाय के मरते ही नगर निगम के ट्रैक्टर के लिए फोन मिलाने से पहले एक बार उसके दिए दूध के प्रति तो आभार जताते हुए श्रद्धासुमन अर्पित कर ही दें। अगर नहीं कर सकें तो एक बार यह सोचें कि गाय जो दूध देती है-वह हम सभी के जीवन के लिए कितना अपरिहार्य बनता जा रहा है। भले ही आपको गोबर, गोमूत्र की महत्ता नहीं पता हो, दूध के बारे में तो जानते ही हों।
sadar pranam....
ReplyDeletekalam ke tir hamesha sahi nishane ar lage h.