तूने जब सेंध लगाई
छैनी से भी पहले
आंगन में फैल गई
तेरी रोशनाई
रेत, किरचें और उधर से आती किरण
हां, सूरज तेरा-मेरा अलग नहीं था
किरचें और रेत थी मेरी
मेरी दीवार से
फिर जाने क्यों लगता रहा जैसे
सब कुछ था प्रेरित-अभिप्रेरित
उधर से, तेरी ओर से
छैनी करती रही सूराख
टकराया तेरा होना
तेरे होने का अहसास
अलग था कुछ-अब तक अनदेखा
वजूद जो चाहता था चुरा लेना
मैं निश्चित, आश्वस्त!
क्या?
था क्या मेरे पास
चुराने लायक?
मैं भी समेट कर घुटने
टेक कर पीठ दीवार से
करने लगा इंतजार
चलती रही हथौड़ी
पिटती रही छैनी
बढऩे लगा आकार
सब कुछ दिखने लगा आरपार
मेरा बहुत कुछ जा चुका था उधर
- हरीश बी. शर्मा
harish jee
ReplyDeleteghani khamma !
koi shabd taashtaa hai ti koi pathar ko man mohak roop pradan kar apni abhivyakti pradan kartaa hai . bas man me bhawanaye sudh honi chahiye . sundr abhivyakti .
saadar