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Monday, October 11, 2010

साक्षात्कार अमिताभ का, चुनौती खुद से

वास्तव में उन पलों को बयान नहीं किया जा सकता। जब मैंने अमिताभ बच्चन का साक्षात्कार किया। भास्कर के लिए रिपोर्टिंग करते हुए ऐसे पल कई बार आए। संतोषानंद और निदा फाजली से लेकर टॉम ऑल्टर सरीखी विभूतियों से मिलना हुआ तो गोविंदाचार्य से लेकर धर्मेन्द्र, राज बब्बर जैसे लोगों की दिनचर्या को भी करीब से देखा। ऐसे मौके कई बार आए जब मेरे सामने देश की अनमोल रत्न थे। साहित्य-संस्कृति से लेकर समाज और राजनीति की धारा को प्रवाहमान रखने वाले इन लोगों से मिलने के लिए किए जाने वाले प्रयास और फिर मिलने के बाद उनकी रिपोर्टिंग करने की चुनौती। आज यह सब किस्से-कहानी बन गए हैं। लेकिन आज भी पांच साल पुराना वह वाकया ताजा है तब अमिताभ बच्चन से मिलना हुआ था। बीकानेर के पास दरबारी नाम की लोकेशन पर फिल्म एकलव्य की शूटिंग के लिए उनका आना ही बीकानेर की प्रेस के लिए एक चुनौती था। कैसे उनसे बात होगी? यह सवाल यक्ष प्रश्न था। भास्कर लगातार शूटिंग रिपोर्ट छाप रहा था। विधु विनोद चौपड़ा, प्रदीप सरकार जैसे लोगों की रिपोर्ट भी फीकी थी क्योंकि पाठक अमिताभ बच्चन का इंटरव्यू चाहते थे। 13 अक्टूबर 2005 को सुबह-सुबह मैं, हमारे फोटो जर्नलिस्ट श्रीराम रामावत और पीटीआई के फोटोजर्नलिस्ट दिनेश गुप्ता दरबारी पहुंंचे। पता चला अमिताभ ने एक सीन कर भी लिया है और अब अपनी वेनिटी वैन में हैं। अमिताभ की वेनिटी वैन के दरवाजे के नीचेे साक्षात्कार की मंशा जताते हुए स्लिप और कार्ड खिसकाया। 15 मिनट में समय मिल गया कि शाम को अमिताभ मुखातिब होंगे। इस शाम का इंतजार हमारे लिए युगों जितना लंबा था। मुझे सुबह से ही लगने लगा था कि यह समय सामान्य नहीं होगा। इस असामान्य समय से सामना करने के लिए मेरे पास सवाल के अलावा कोई हथियार भी नहीं थे।
शाम तक सारे शहर की प्रेस को यह पता चल गया था कि अमिताभ प्रेस से बात करेंगे। शाम को सूर्यास्त के दृश्य के बाद जब अमिताभ फ्री हुए तो दरबारी में लॉ-एंड-ऑर्डर की स्थिति बिगडऩे  की आशंका हो गई। अमिताभ ने कहा, गजनेर पैलेस चलते हैं। वहां बात हुई। तकरीबन 16 मिनट चली लेकिन लगा जैसे वक्त ठहर गया। अमिताभ बीकानेर की प्रेस के सवालों का जवाब धैर्य से देते रहे। कभी-कभी तल्ख भी हुए तो व्यंग्य भी किया। मेरे पास पूरा मौका था कि उन्हें बहुत करीब से महसूस कर सकूं। मेरे सामने वह अमिताभ थे, जिनसे मैं गहरे तक जुड़ा था। उनसे सवाल करने का मौका था। बाबूजी के लोकगीतों पर काम करने से लेकर मैथड़ एक्टिंग, राजनीति, कजरारे जैसे गाने पर ठुमके लगाने सहित खुद की आत्मकथा लिखने जैसे कई सवाल मैंने पूछे। यकीनन, अविस्मरणीय थे वे क्षण।  इंटरव्यू के बाद वाले क्षण तो और भी अद्भुत तब मैं अमिताभ को यह बता सका कि उनकी वजह से ही मैं पत्रकारिता कर रहा हूं। हां, यह सच है कि अमिताभ ने अपने एक साक्षात्कार में कहा था कि इस जन्म में तो जितना करना था वह हो गया लेकिन अगला जन्म इंसान के रूप में मिला तो मैं पत्रकार बनना चाहूंगा। अमिताभ को यह बताया तो उन्हें अच्छा लगा। लगभग पौन घंटे में हम गजनेर पैलेस से बाहर थे लेकिन यह समय एक अध्याय बनकर मेरे जीवन में शामिल हो गया।  
हरीश बी. शर्मा 

2 comments:

  1. आदरणीय हरीश भाई सा ! बहुत अच्छा लगा आपका article . आपके मध्यम से श्री अमिट जी की जिंदगी के कुछ खास पलों को छूने का सुअवसर हमे भी मिला..आभारी हैं आपके. आपकी जिंदगी में ऐसे पल और भी आयें..और आप पत्रकारिता के क्षत्र में बीकानेर ही नहीं, राजस्थान ही नहीं अपितु पूरे भारत का नाम रोशन करें...! आभार !

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  2. ghani ghani khamma !
    harish b amitabh sharma jee !
    aap ke aur bachchan babu jee ke baare kya kahe , aap dono ne hi jaavan me behad sangarsh kar ye apn apna mukaam haasil kiya hai , jo anukarniyaa hai ,
    aap dono ko big saalaam !
    saadar

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