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Friday, November 12, 2010

बयानों का च्युइंगम...

हमें लड़ाइयां काफी पसंद है। जल, थल और अग्नि को आजमाने के बाद जब लड़ाई की संभावनाएं खत्म हो गई तो अणु-परमाणु पर हाथ आजमाया और अब जैविक-रासायनिक से आशंकित हैं। इस बीच किसी ने संपूकला फेंका कि अगला युद्ध पानी के लिए होगा, यह भी मान लिया लेकिन लड़ाइयों की असली वजह पर भी तलाशी जानी चाहिए। शब्द। प्रतिक्रियाएं। उफान। देखिये ना, ये राजनेता किस तरह हमें लड़ा रहे हैं। फेंकते हैं बयानों के ब्रह्मास्त्र और फिर घर जाकर चैन से सो जाते हैं। पहले यह काम दूसरी-तीसरी पंक्ति के नेता किया करते थे, अब ऐसे कार्यों के लिए दूसरों पर भरोसा नहीं किया जाता। क्रेडिट जाता है। मीडिया है। फेसबुक जैसी सोशियल नेटवर्किंग है। विचारों की हमारे पास ना कभी कमी रही, ना रहेगी।

हम क्यों नहीं मानते जबकि जानते हैं कि इस तरह के बयान सिर्फ भड़काने के लिए होते हैं। बस, बह जाते हैं। पक्ष-विपक्ष में खड़े हो जाते हैं। पाले बांध लेते हैं। इस में भी हित किसका निहित है। इस तरह के सुनियोजित बयानों के फेर में पडऩे की बजाय एक बार खुद को आजमाएं। इस देश में बयानों की राजनीति ही चलानी है तो बयान पर एक और बयान दे दें। बहस जारी रहेगी। बहस जारी रहेगी तो ऐसा कहा जाता है कि लोकतंत्र मजबूत रहेगा। कितनी अच्छी बात है कि हमारे राजनेता बहस जारी रखने के लिए कितना बड़ा योगदान दे रहे हैं। वक्त-जरूरत एक बयान उछाल देते हैं, मजबूत होता रहता है लोकतंत्र।

तो लोकतंत्र की मजबूती के लिए शब्दों की लड़ाई जारी रहे। अगला विश्वयुद्ध कब होगा, होगा भी या नहीं। इन सभी आशंकाओं पर भी बहस कर लेंगे लेकिन मुझे लगता है कि विश्वयुद्ध शुरू हो चुका है। शब्दों से सत्कार का, शब्दों से प्रतिकार का, शब्दों से संहार का। खुश होने के लिए खुश हों भले ही लेकिन यह दुखद भी तो है कि एक ऐसा वर्ग है जो यह मान चुका है कि जो बोलते हैं, उन्हें बोलने दो और अगर बोलने के लिए विषय खत्म हो जाएं तो एक-दो बयान और उछाल दो। बयानों पर जुगाली करते रहेंगे, च्युइंगम बनाते रहेंगे। देश को चलाने वाले चलाते रहेंगे।

हरीश बी. शर्मा

3 comments:

  1. sahi h bhaisahab, hame ladaeya hi to pasand h. bolywood me mar dhad ki filme love story se jyada hit hoti h,
    sadak par apni kala ka pardshan karne wale nat ke bajay koi do aadmi lad rahe ho to jayda bheed ekatr ho jate h,
    bachpan se ham yahi to sikhte aate h ki lado tabhi aage badhoge, lado tabhi safalta milegi, har kam me junun ho, har bat me josh ho, yahi sab apekshye hi to samaj logo se karta h.
    ha hame ladaeya hi to pasand h.
    pata nahi ye kesi ojsvita vale shbd hote h jo hame prabhavet karte h!
    ye koun sa samaj h jisme shamil adhikans log iski bato se asahmat hote hue bhi samaj ke dar se purani patri par chalte rahte h!
    ye koun sa desh h jaha visva ke sabse jyada layak yuva rahte to h par unki takat ko jan bhuj kar vikas ki bajay ladaeyo ki dihsa me badhaya jata h!
    sahi h bhai sahab hame ladaeya hi to pasand h.

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  2. jai ho hari bahi !
    vichar sabhi ke apne apne hote hai , jeevan sabhi jeete hai magar jene ka tareeka alag alag hota hai . sochte sabhi hai magar dhang bhin bhin hota hai .chinta sabhi karte hai desh ki samaj ki magar .. sochte sabhi apne ghar ka pehle hai .. jaane kyun , insaan simtata jaa raha hai .. apne swarthon me . kyun .... ye khud ek swal hai .
    ghani khama

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