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Saturday, August 7, 2010

बस कलम चलाते हैं हम तो, बन जाये तो अल्फाज़ बने

आवेदन ही करते हैं, कोई माने तब कोई बात बने
बस कलम चलाते हैं हम तो, बन जाये तो अल्फाज़ बने
अल्फाज़ निराले ऐसे की सुनकर दिल में एक प्यास जगे
जिस प्यास को तृप्ति देने को, पनघट भी घर के पास बने
पनघट ऐसा हो जिस पर, नित बादलवा बरसात करे
छम-छम नाचे मोर मधुर-स्वर, कल-कल पानी साज़ बने
पानी बरसे चाहे आँखों से, चाहे घन घनघोर बरसात करे
बस, देखे जो वह बह जाये, सागर जैसा श्रृंगार बने
सागर-सा गहरा नीला-सा, बस नीलाम्बर हो बाहों में
चंदा जैसा चंचल लहरें, विद्युत रेखा पतवार बने
पतवार बनती है कविता, जख्मों की टीस दवात बने
मौसम भी खिदमतगर बने जब बीते दिन हम याद करे

3 comments:

  1. aabhar... aap ko agr sundar laga to vakai sundar hoga...

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  2. पतवार बनती है कविता, जख्मों की टीस दवात बने
    मौसम भी खिदमतगर बने जब बीते दिन हम याद करे

    kay baat !kya baat!! kya bat !!!

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