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Tuesday, July 13, 2010

बधाई ''हंस'' टूल बना, अब आपकी बारी

बांसवाड़ा के भारत दोषी ने ''हंस'' में एक आलेख लिखकर विवाद के रास्ते चर्चित होने का तरीका अपनाया है. भाई दुलाराम सारण ने इस आलेख कि स्केनिग करवा के मेल भेजे है. इस तरह दोषी के अभियान को आगे बढाया है. मुझे नहीं लगता के ऐसा पहली बार है, इसलिए मुझे दोषी पर कोई दोषारोपण भी नहीं करना. मुझे लगता है उन्हें ऐसा करके सुकून मिलता है. आज के युग में लोग सुकून के लिए क्या-क्या नहीं करते. दोषी ने इसके लिए ''हंस ''  को टूल बना लिया तो उन्हें बधाई देना चाहूँगा.
स्वाभाविक रूप से''हंस ''  में छपे को आज भी गंभीरता से पढने वालों कि कमी नहीं है, राजस्थानियों को दर्द हुआ तो ये दर्द अपनों का दिया ही है. वो एक शेर भी तो है हमें तो '' अपनों ने लूटा, गैरों में कहाँ दम था, कश्ती वहां डूबी जहाँ पानी बहुत कम था'' लिहाजा इस बार राजस्थानी कि नाव चम्बल में हिचकोले खाती दिख रही है. आभार भारतजी का.
मुझे एक कविता बड़ी प्रभावित करती है...
ये अच्छा ही तो करते हैं
जो भाई-भाई होकर
आपस में लड़ते हैं
जरा सोचो
जब एक भाई
अपने दूसरे भाई को नहीं मार पायेगा
तो भार लाद बन्दूक का
वो दुश्मन के सामने
किस मुंह से जायेगा ?
इसलिए, अगर ये किसी के सामने सीना ताने रहने के लिए विरोध हो रहा है तो दोषी जी के इस अभियान पर क्या आपत्ति हो सकती है. खासतौर से आदिवासियों को?
कौन नहीं जानता राजस्थान में आदिवासी कहाँ रहते हैं?
राजस्थानी संस्कृति का आधार क्या है?
राजस्थानी भाषा कितनी समृद्ध है ?
लेकिन, इस देश में नागरिक अधिकारों के नाम पर कहा तो कुछ भी जा सकता है. कहे हुवे को सहन करने के नाम पर अगर किसी कि मेरे से दीगर राय हो तो जवाब हंस के माध्यम से देने का रास्ता साफ़ हो गया है, इसलिए बधाई!
साहित्यकार रवि पुरोहित कि बात ठीक है के ''हंस ''  ने जब ये मुद्दा उठा ही लिया है तो जवाब भी इसी माध्यम से दिया जाना चाहिए.
यक़ीनन, ''हंस ''  अगर टूल भारत दोषी के लिए बन सकता है तो जवाब प्रकाशित करने जितने काम का तो राजस्थानियों के लिए भी साबित हो सकता है.

4 comments:

  1. दोषी का आलेख छापकर 'हंस' ने राजस्‍थानी के लिए अपने-आप मंच उपलब्‍ध करा दिया। मैंने मेल इसीलिए किए की राजस्‍थानी हिमायती इसका जवाब हंस को भेजें। हंस छापेगा तो उसका संपादकीय खुलापन होगा अन्‍यथा दोषीजी की वाणी से मिलन।


    मेरी फेसबुक पर भी इसको लेकर कुछ सार्थक बहस हुई। मैं समझता हूं कि हंस के आगामी अक में आप सब लोग कुछ और सार्थक करेंगे।

    सादर।

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  2. बिल्कुल, हमें अपनी बात कहने का हक़ है लेकिन इस से पहले दोषीजी का आकलन कर लेना चाहिए कि उन्हें या के उन के कहे को कितना वेटेज दिया जाये.

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  3. harish ji aapri baat ekdam khari hai ke doshi ne kittak bhaav devna chaaije? doshi ar ishwari lal vaishya in dova ro saru su o ij kaam reyo hai. rajasthani bhasha ro virodh karno. abe in virodh ne hava devan me "hans" jisi patrika saath diyo hai. to aapaa hans re manch su aapaa ri baat raakh saka. in re saathe ij mhe rajasthani loga su araj karni chaavu ke ve in dhoshi ne jyaada bhaav ni dey ne hans re manch ro faaydo uthaavno chaaije.

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