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Friday, July 16, 2010

बोल क्या चाहता है भाई...

मानसून के बेरुखे व्यवहार और पाल बाबा के चमत्कार या के सचिन, सायना और धोनी के बीच बढती अमीरी का भले ही कोई मतलब नहीं हो लेकिन बहस जारी है. बावजूद, यह प्रश्न यक्ष ने जैसा किया वैसा है कि आम आदमी किसे पसंद करता है ?  सिनेमा से लेकर विज्ञापन तक ये चिंता है क्योंकि ये आम आदमी ही मुआ सारी अर्थ व्यवस्था की धुरी बन गया है. रूपया नए कलेवर में आया तो आम आदमी जान ना चाहता है की इस से उसे क्या फायदा होगा. लेकिन ये कोई नहीं जानता.
यानी जो बात आम आदमी जान ना चाहता है वो कोई नहीं जानता. पाल बाबा भी नहीं. मानसून तो आम आदनी के लिए विपदाओं की वज़ह बन जता है, उसे इस से लेना क्या. हाँ, लेने के देने जरुर पड़ जाते हैं. पहले उसने अमीरों को और अमीर होते देखा फिर फिल्म वालों को और अब खिलाड़ियों को अमीर बनते देख रहा है. उसने सुना गरीबी हटेगी, बढ़ गई. उस ने माना '' खेलोगे-कूदोगे तो होगे खराब... '' यह भी गलत साबित हुआ.
वह लगातर गलत साबित हो रहा है और खुद को हर बार नए सिरे से स्थापित करने की कोशिश कर रहा है. दूसरी और उस पर शोध हो रहे हैं. जान ने की कोशिश हो रही है की वो क्या चाहता है. अगर ये पता चल जाये तो लोग अपने प्रोडक्ट लाँच करे, फ़िल्में बनाये, विज्ञापन तैयार करें.
पता नहीं गलत कौन हैं. आम आदमी या आम आदमी को बहुत कुछ मान ने वाले? कहीं न कहीं बड़ा सूराख है. जब तक इस का पता नहीं चल जाता ये आम आदमी इसी तरह चुइंगम बना रहेगा. सूना है इस देश में पाल बाबा की परम्परा में तोते, बैल और चिड़ियाँ रही है....
अन्य आलेख देखें  - www.harishbsharma.com

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