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Monday, July 19, 2010

सांसें उधार मांग कर रस्में निभाई है

क्या खूब जीकर जिंदगी हमने बितायी है
सांसें उधार मांग कर रस्में निभाई है
रखना था हरेक पल का हिसाब हमें यारों
जिस में थे जागे रूठकर वे रातें गिनाई है
कुछ नाज़-नखरे, इंतज़ार, वादे ओ कुछ व्यवहार
दीवानगी, नादानियाँ प्यारे वफाई है
गर पूछ लोगे जिंदगी जीने का मुझ से राज़
कैसे कहूँगा फ़क़त कुछ यादें बचाई हैं
ज़ख्मों का है तकाजा, देना है एक ज़ख़्म
दोस्त कहते हो उसे, वो तो हरजाई है

4 comments:

  1. vo fhir se lot aye h mahfil me adab ki,jiski thi sabko jostju n jane kab ki, jo aadami sansen udhar mang kar rasmen nibha ta h uska ek ek lafz ba mani h

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  2. vo fhir se lot aye h mahfil me adab ki,jiski thi sabko jostju n jane kab ki, jo aadami sansen udhar mang kar rasmen nibha ta h uska ek ek lafz ba mani h

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  3. hakikat he jise jahir karne par adhik sukun milta he...he na?

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  4. गर पूछ लोगे जिंदगी जीने का मुझ से राज़
    कैसे कहूँगा फ़क़त कुछ यादें बचाई हैं

    हरीश भाई , खम्मा घणी !
    ये पंक्तिया आप कि नज़र करता हूँ , यादों में जीना भी हर किसी को नहीं आता बस होसो हवास में रहे आदमी ,
    जय हो !

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