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Sunday, July 18, 2010

लिखा हुआ इतिहास बनता है लेकिन हकीकत बन जाए तो ...

एक खबर किस तरह नाटक के लिए थीम दे सकती है, इसका उदाहरण है मेरा नाटक हरारत। वर्ष 2003 में एक खबर फाइल की थी लव स्टोरी-2003: पति-पति और किन्नर। इस खबर में एक ऐसे किन्नर की कहानी थी जिसने एक पुरुष से शादी रचाई लेकिन जब उसे लगा कि पुरुष को पत्नी के रूप में एक स्त्री की जरूरत है तो उसने खुद पहल करके उसकी शादी की। बीकानेर रेलवे स्टेशन से शुरू हुई यह प्रेम कहानी बिहार के गांव तक पहुंची और इस तरह एक खबर ने रूप लिया। लेकिन किन्नर सीमा और उसके साथी सत्यनारायण से बातचीत में ऐसे कई भाव सामने आए जो खबर नहीं बन सकते थे। पत्रकार की सीमा जहां कसकती है, रचनाकार उसे संभाल लेता है। मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ। नाटक हरारत लिखा गया और जवाहर कला केंद्र, जयपुर की लघु नाटय लेखन प्रतियोगिता में प्रथम भी रहा। इस नाटक की मूल थीम रही कि क्या किसी किन्नर के मन में मां या बाप बनने की इच्छा नहीं जागती? जब ऐसा होता है तो क्या होता होगा। बस इसी आधार पर रचे गए नाटक में एक युवती के कुंवारी मां बनने की जिद और किन्नर के उसकी जिद को पूरा करने के लिए दिए गए साथ को दर्शाया गया। दुनियावी हकीकतों और नाटकीय पंच के बीच नाटक की मूल थीम को थामे रखना एक बड़ी चुनौती थी जिसके लिए अंत में एक दृश्य क्रियेट किया गया कि अंदर प्रसव वेदना से युवती तड़प रही है और बाहर किन्नर। इस वेदना को सह नहीं पाने के कारण युवती की मौत हो जाती है और इस तरह बच्चा किन्नर को मिल जाता है। पहला मंचन विपिन पुरोहित ने जयपुर में किया। इसके बाद हाल ही में शिमला के मनदीप मन्ना ने इस नाटक का मंचन दो-तीन बार किया। हालांकि शिमला का मंचन मैं देख नहीं पाया लेकिन जिस तरह के फोटोग्राफ्स मनदीप मन्ना ने भेजे, कहा जा सकता है कि उन्होंने मंचन में अपनी पूरी ताकत झोंक दी। वास्तव में नाटक मंच पर ही साकार होता है। एक श्रेष्ठ निर्देशक का हाथ मिल जाए तो पूर्णाकार हो जाता है।
हरारत नाटक को लेकर मेरे अनुभव बड़े ही रोचक रहे। पहले मंचन के बाद एक इटेलियन शोधार्थी इयान वुलफोर्ड जवाहर कला केंद्र के रंगायन से निकले और पूछते-पूछते मेरे पास आए। उन्होंने हिंदी में यह कहकर मुझे अचंभित ही नहीं बल्कि अभिभूत कर दिया कि इस नाटक को देखकर उनके आंसू निकल गए। फिर उन्होंने इस थीम को लेकर मुझसे पूरा साक्षात्कार भी किया।
सबसे रोचक संयोग तो यह रहा कि नाटक के मंचन के तीन साल बाद एक दिन अचानक से मेरा एक किन्नर कमला से साबका हुआ जिसने एक अनाथ बच्चे को पालने का बीड़ा उठाया जो उसे कचरे के ढेर पर बंद डब्बे में मिला। कमोबेश ऐसा ही मेरा क्लाईमैक्स था। इस संयोग के साक्षी रहने रंग निर्देशक सुधेश व्यास। बाद में यह भी खबर बनी कि कमला के हाथ में करमा की रेखा। कमला का कहना था कि किस्मत से यह लड़की मिली है, इसलिए इसका नाम भी करमा रखा है। कहा गया है कि लिखा हुआ इतिहास बन जाता है लेकिन जो कल्पना के आधार पर लिखा जाता है वह हकीकत में तब्दील हो जाता है तब कलम से डर लगने लगता है। मेरे साथ अमूमन ऐसा होता है लेकिन लिखने की चाहत कहती है - डरना मना है। 



''हरारत'' का शिमला में मंचन

5 comments:

  1. bhai harish b. sharma ke likhe natak hararat vaqahi dilo dimag me vo hararat peda karten h jo insan ko ginda rakhane ki pahli shart h our aaj zahni tor par zinda rhana bhut zaruri bhi h aaj samaj manto ki khani dhanda gosht hota ja rha h ese me bhai harish ji jese zinda log hararat peda kar rahen han

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  2. bilkul, rachna k pete to ye koshish jari he...

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  3. हरीश भाई बधाई ! बधाई !! और बधाई !!
    !एक रचनाकार कि तभी सफलता होती है जब उसकी रचना पाठको दर्शको के सामने आये और इस में बेहद सफल रहे है आप के नाटक यही सफलता से आगे बढ़ते जाए ये कामना करते है ,
    पुनः बधाई !

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  4. "Haraarat" ke sabhi kalakaron ke bhawnapurn chehre is baat ke gawah hain ki naatak bahut hi sashakt likha gya hai..fir manchan ke baad puruskar milna lekhak aur nirdeshak dono ke liye ahmiyat rakhte hain...meri hardik badhaaee aur shubhkamnayen...

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  5. Pl aap mujhe apna mb. De degeye. Baat karne hai. Drfiroz 9044918670

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