पोंछ लो आंसू फिर रोना है,
जागो तुमको फिर सोना है
बिलखा है बचपन जो जाना,
इसे अँधेरा अब ढोना है
कौतुक क्यूँ करते हो कौवों,
तुम्ही को खाना जो होना है
क्यूँ रोते नहीं राज़ बड़ा है,
क्या पाया था, जो खोना है
पहले था घर फ़क़त बाप का,
अब बिखरा कोना-कोना है
रहिमन के धागे की गांठें,
सुलझे जब चांदी-सोना है
खुल्ला खेल फर्रुखाबादी,
लोग कहे जादू-टोना है
* आप चाहें तो इसे छोटे बहर की ग़ज़ल के तौर पर ले सकते हैं. मैं ग़ज़ल के मामले में कोरा हूँ. इसे ग़ज़ल नहीं मन जाये तो मुझे कोई आपत्ति नहीं होगी.
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