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Friday, June 11, 2010

अग्निपथ-अग्निपथ-अग्निपथ...



वृक्ष हों भले खड़े, हों घने, हों बड़े
एक पत्र छांव भी मांग मत
कर शपथ-कर शपथ
अग्निपथ-अग्निपथ-अग्निपथ...

श्री हरिवंशराय बच्चन की ये कविता प्रेरणा देने वाली है. खासतौर से आज के दौर में जब लोग सफलता की सीढियां चढ़ने के लिए गोडफादर की अनिवार्यता का प्रतिपादन करते हैं, अवसाद को जन्म देते हैं. यह कविता साथ देती है, दूर तलक...
मेरा यह भी मानना है की अमिताभ बच्चन को जन सामान्य का नायक बनने में फिल्मों से भी बड़ी भूमिका अगर किसी ने निभाई है तो वह श्री हरिवंश राय बच्चन हैं. उन्होंने अपनी आत्मकथा में ही नहीं बल्कि सृजन के दूसरे माध्यम में भी अवचेतन रूप से अमिताभ बच्चन को शामिल किया. भले ही ये सायास नहीं हो लेकिन था तो सही. लोग गोडफादर से ऐसी ही उम्मीद करते हैं.

2 comments:

  1. कुछ सत्य प्रेरणा से भी आगे होते हैं जैसे किसी बड़े आदमी और आपकी भाषा को उधार लूँ तो godfather की संतान होना. यह हरिवंश जी के भी हाथों में नहीं था कि वो अपने बेटे को अवचेतन से बाहर निकाल सृजन की कलम चला लें.

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  2. वाह! मज़ा आ गया. बात तो सही है.

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