मरुगंधा के मार्फ़त आप का सामना करने कि कोशिश नए सिरे से है. हालाँकि अंतरजाल की दुनिया में अरसा होने आया है. ब्लॉग www.harishbsharma.com के जरिये संपर्क में हूँ लेकिन शिकायत यह रही की साहित्यिक रचनाएँ नहीं मिल रही. मरुगंधा के माध्यम से अपनी रचनाएँ, रचना प्रक्रिया, विरासत में मिले और समकालीन सृजन पर अपनी प्रतिक्रिया दर्ज करने के प्रयास में हूँ. वस्तुत: यह सारी कवायद मेरी सक्रियता का पैमाना होगी जो आप की प्रतिक्रियाओं से परिभाषित होंगी...नमस्कार !
वाह भाई सा ! घणी आछी लागी आपरी आ अभिव्यक्ति... बधाई !
ReplyDeletebha sa ji soro karwa diyo hai. the na thamiya likhta likhta, main thosi or jan pechan bhadawani chawan!!
ReplyDeletekai kevo harish bhai thari lekhani se . saachi kavo ho aap ri laakat ne dekhr chalno chaije pan khechal to kar levni chaihe.
ReplyDeleteaap ri kavita saaru teep hai oopar deeth '' tham panchida '' saaru . aap gadhya aur padhya donu suvav naa hai .
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