चूके कहाँ, कहाँ हारे हम
हम ने कब तोड़ी सीमाएँ
किस का वादा कोई इरादा
बना न पाए, निभा न पाए
बंधन थे जकड़े- अधखुले
ना स्वतंत्र, आधीन नहीं था
बोझिल नहीं न सीना ताने
कदम-कदम पर थे मयखाने
मेरी अपनी जीवन ज्योति
नई दिशा से आलोकित है
मेरा मन जलते अंगारे
हर सपने को सत्य पुकारे
झरते आवेगों से बहकर
झीलों से, नावों से सहकर
फिर मैं फिर से फिरकर आता
आशाओं के दीप जलाने
परिणामों के साज़ बजाने
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