मरुगंधा के मार्फ़त आप का सामना करने कि कोशिश नए सिरे से है. हालाँकि अंतरजाल की दुनिया में अरसा होने आया है. ब्लॉग www.harishbsharma.com के जरिये संपर्क में हूँ लेकिन शिकायत यह रही की साहित्यिक रचनाएँ नहीं मिल रही. मरुगंधा के माध्यम से अपनी रचनाएँ, रचना प्रक्रिया, विरासत में मिले और समकालीन सृजन पर अपनी प्रतिक्रिया दर्ज करने के प्रयास में हूँ. वस्तुत: यह सारी कवायद मेरी सक्रियता का पैमाना होगी जो आप की प्रतिक्रियाओं से परिभाषित होंगी...नमस्कार !
मैं हाथ तेरा हाथ में ले पवन बांधू साथ चलूं सागर सात, सातो भौम अपनापा रचूं। मैं रचूं एक-एक अणु में आस्था भाव भर दूं सूत्र-से साकार दूं कुछ पैहरन बेकार वो उतार दूं हो वही मौलिक कि जितना रच रहा आवरण सारे वृथा उघाड़ दूं
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