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Saturday, June 5, 2010

अपनापा

मैं
हाथ तेरा हाथ में ले
पवन बांधू साथ
चलूं सागर सात,
सातो भौम
अपनापा रचूं।
मैं रचूं एक-एक अणु में आस्था
भाव भर दूं
सूत्र-से साकार दूं
कुछ पैहरन बेकार
वो उतार दूं
हो वही मौलिक
कि जितना रच रहा
आवरण सारे वृथा उघाड़ दूं

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