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Saturday, June 5, 2010

राजस्थानी कविता : चाळणी

रोजीना थारै शबदां बिंध्योड़ी चालणी
म्हारे मन में बण जावै
थूं जाणनो चावै कम अर बतावणो चावै घणौ।
म्हारे करियोड़े कारज में
थूं खोट जोवै
अर कसरां बांचै
म्हे जाणूं हूं, पण चावूं
थूं थारी सरधा सारु इयां करतो रे
चायै म्हारे काळजे में चाळनियां बधती जावै
काल थारा कांकरा अर रेतो
ई चालणी सूं ई छानणो है

2 comments:

  1. समय सत्य की छलनी है जिस से सबको छनना है ,
    कटवी और कटुता से डटकर हमें अब लड़ना है ,
    काची माटी है हम अब घट रूप मै खुद को घड़ना है ,
    आलोचनाओं को रोंदते हुए आगे हमें अब बढ़ाना है ,
    पर
    समय सत्य की छलनी है जिस से सबको छनना है ,

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