अनजानों से शहर भरा
अपना कोई कब होता है
लुट जाते हैं लूटने वाले
लूटे जो सिकन्दर होता है
ज़र्द चेहरा, सर्द सांसें
दर्द पोरों में समाया
दिन दीवाने
ठंडा सूरज
चांदनी पर प्रेत छाया
जो और भरोगे बह जायेगा
सूखेगी रवानी पानी में
कुछ होश करो देने वालों
भर जायेगा पैमाना है
आज बरसा है कोई
ठंडी हवा ने ये बताया
आज भीगा है कोई
सौंधी सी खुशबू ने बताया
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