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Saturday, June 5, 2010

राजस्थानी कविता : सुपारी

सरोते रे बीच फंसी सुपारी
बोले कटक
अर दो फाड़ हुय जावै
जित्ता कटक बोलै
बित्ता अंस बणावै
लोग केवै सुपारी काटी नीं जावै
तद ताणी
मजो नीं आवै-खावण रो
आखी सुपारी तो पूजण रे काम आवै
पूजायां बाद
कुंकु-मोळी सागै पधरा दी जावै
स्वाद समझणिया सरोता राखै
बोलावे कटक
अर थूक सागै, जीभ माथै
रपटावंता रेवै सुपारी ने
सुपारी बापड़ी या सुभागी
जे जूण में आई है-लकड़ां री
अर सुभाव है-स्वाद देवणों
तो ओळभो अर शबासी कैने

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