नीड़ के तिनकों की जलती एक धूनी
तापते-तपते सिकती रोटियां और
बिलखती मादा जो सहती भ्रूण हत्या
क्या है मंज़र देवता खामोश क्यूँ है.
लीलती हैवानियत रहनुमाई को
बिखरती बिंदी की अस्मत बीच रस्ते
बीनते हर एक चिंदी को खबरची
खबर में स्याही सहारे खून रिसता
झुर्रियों का तिलिस्म क्यूँ बिखरा पड़ा है
देख ये बचपन खड़ा मायूस क्यूँ है
क्या है मंज़र देवता खामोश क्यूँ है.
मुस्कराहट चीख में तब्दील होती
रागिनी के स्वर में तांडव क्यूँ धधकता
क्यूँ है वीरानी किसी मंदिर में छाई
क्यूँ अजानों का है स्वर धीमा है लगता
किस के डर से शिकन औ' अफ़सोस क्यूँ है
क्या है मंज़र देवता खामोश क्यूँ है.
जो भी उनके घर जनमते राज़ करते
दिग्गजों के जोर तख्ते ताज बनते
सरफरोशी की तमन्ना और तमाशे
अस्मिता आदर्श ले दर-दर भटकता
मलंग बैठा दूर कोई गीत गाता
गीत के शब्दों में ये उपहास क्यूँ है
क्या है मंज़र देवता खामोश क्यूँ है.
हरीश भाई ,
ReplyDeleteखम्मा घणी !
ये कविता पढ़ आप का चेहरा समक्ष दिखने लगा , क्यूंकि आप से अनेकों बार आप से सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है ,
एक दर्द एक आक्रोश नज़र आती है , पढ़ते समय ऐसा लगता है की सामने चल चित्र चल रहा हूँ .
बेहद सुंदर .
साधुवाद !
aabhar
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