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Tuesday, June 15, 2010

जिसे मेरा कहा जा रहा है वो है क्या मेरा

सृजन के नाम पर कारखाने लगाने वालों की भी कमी नहीं है तो यह कहने वाले भी आसानी से मिल जाते हैं कि उन के वश में लिखा जाना है ही नहीं. अनुभूतियाँ, संवेग और प्रतिक्रिया नितांत एकांत कि पैदाइश होती है और इसे सृजन का नाम देकर हम इसे साधारणीकरण से दूर कही विशिष्ट कही जाने वाली गलियों में भटकने के लिए मजबूर कर देते हैं.यही वो जगह है जहाँ सृजन को समझाने में मैं खुद को असफल पाता हूँ, जो मिलता है उस से असहमति जताता हूँ.
मेरा सरोकार भीड़ से है लेकिन मेरे रचाव के साथ ऐसा नहीं है. मैंने अपने शुभचिंतकों के आग्रह पर सौ से ज्यादा अभिनन्दन पत्र लिखे होंगे. इन में से कुछ ऐसे भी रहे जिन्हें मैं जनता तक नहीं था लेकिन ऐसा कर पाया क्यूंकि करना था. कविता, कहानी या नाटक को लेकर ऐसे दबाव में कभी नहीं रहा. हालाँकि, रचनाकर्म कि निरन्तरता बनी रही. यह मेरा खुद से वादा था.
यह सच है कि मैं अपने विषय सीधे समाज से उठता हूँ लेकिन वापसी उसी तर्ज़ पर नहीं कर पता. कुछ ऐसा हो ही जाता है जो मेरा नहीं होता, सांचे में पिला या ढांचे में ढला नहीं होता. यह जो लिखा जाता है वो कई बार तो न केवल  मेरी सीमाओं से बाहर होता है बल्कि कई बार तो ऐसा भी हुआ है के पूर्वनिर्धारित भी नहीं हुआ है. मैं मानता हूँ कि किसी कारखाने कि तरह नित नए विषय रोजाना आते-जाते रहते हैं लेकिन यह भी सच है कि किसी भी स्वरूप को लेकर मैं तरतीबवार कभी नहीं रहा या रह नहीं पाया. तो यह तय हुआ कि मेरे वश में भी लिखा जाना नहीं है. इस बिंदु पर आकर कम से कम मैं फैसला नहीं कर पाता.
फिर यह भी कि क्या ये सवाल जरुरी है.
दुनिया जिसे मेरा रचा मानती है उस से असहमति जता कर बैठे-ठाले क्यूँ अपनी कमजोरी व्यक्त करूँ. लेकिन सच तो यही है कि जिन के बूते मैं खुद को रचनाकार ही नहीं रचयिता जैसे विशेषण चाहता हूँ, उसका अधिकारी हूँ भी या किसी के हक़ को मार रहा हूँ. हो तो यह भी सकता है कि किसी का कहा रिपीट कर रहा हूँ. बहुसंख्यक लोगों ने चूँकि उसे नहीं सुना इसे मुझे रचयिता मान ने में उन्हें कोई ऐतराज़ नहीं लेकिन मुझे...
शक तो यह भी है कि मैं किसी का टूल बना बोल-लिख रहा हूँ. फिर मेरा क्या. पेन, कागज. ब्लॉग, शब्द, अनुभूतियाँ, संवेग, प्रतिक्रिया आदि जिसे मैं अपना मानता हूँ. क्या वास्तव में मेरा है.

3 comments:

  1. -marugandha ki gandh aap ki kamyabi ke roop me faile.
    -aap jaha,jis hal me bhi rahe, hare-thake logo me utsah ke shole bhadakate rahe.
    -aap ka jo yah smit hasya wala photo hai, yah bhi prerana deta hai kasto me ruko nahi,muskan bikherte bade chlo.aap ki sakriyta ko naman
    www.pachmel.blogspot.com

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  2. pranam,
    aap k shbd sada mujhe utsahit karte rahe hain, karte rahenge...vishvash he...

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  3. kai bar khud par kiya hua shak apne hone ko yakin me badal deta h

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